कविता--एक साहित्यिक कल्पना

17 Part

437 times read

21 Liked

कविताः एक साहित्यिक कल्पना तुम एक नदी हो और मैं एक पत्थर, तुम्हारी कलकल की धुन में हुआ मैं मलंग निर्मल धार तुम्हारी छूकर कर गई पावन मुझे अनोखी दुनिया तुम्हारी..चंचल,निर्झर ...

Chapter

×