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कविताः एक साहित्यिक कल्पना तुम एक नदी हो और मैं एक पत्थर, तुम्हारी कलकल की धुन में हुआ मैं मलंग निर्मल धार तुम्हारी छूकर कर गई पावन मुझे अनोखी दुनिया तुम्हारी..चंचल,निर्झर ...