ख़त (बेटी की व्यथा)

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दो    रोज   पहले,  पापा   जी!   आपका    ख़त    आया, ख़ुशी  से  झूम  गई  मैं, यूँ  लगा  मेरे  घर  से  कोई आया। उस   ख़त  को  सीने   से  लगा,  बाबलों  सी  ...

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