रो लेता हूँ

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ग़ज़ल  दिन ये दुनिया जो दिखाती है तो रो लेता हूँ ज़ुल्म मजबूर प ढाती है तो रो लेता हूँ मेरे घर में भी मसर्रत के उजाले थे कभी याद माज़ी ...

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