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मानस का रूप और माहात्म्य (continue) * जुग बिच भगति देवधुनि धारा। सोहति सहित सुबिरति बिचारा॥ त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी। राम सरूप सिंधु समुहानी॥2॥ भावार्थ:-दोनों के बीच में भक्ति ...