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जो मेरा था अब मेरा नहीं होने वाला, बाग़-ऐ-दिल फिर हरा नहीं होने वाला, मैं गर्दे-कारवाँ, वो सबा-ज़मीस्तान दोनों मिल भी जाये तो सेहरा नही होने वाला चिलमन को न लहरा ...