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"ग़ज़ल" क्या दिखाना है क्या छिपाना है, जिंदगी इक महेज़ फसाना है! पूरे होते नहीं कोई अक्सर ख्वाब हम को मगर सजाना है! आज़माया मुझे बहुत उस ने, अब मुझे उस ...