दुर्गा दास--मुंशी प्रेमचंद

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... महासिंह को तो कदाचित ही कभी पहले ऐसे प्यारे शब्दों को सुनने का अवसर मिला हो, खुशी से फूला न समाया। हृदय धड़कने लगा। तुरन्त पलंग से उठकर वीर दुर्गादास ...

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