रामचरित मानस

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दोहाः सुनतेउँ किमि हरि कथा सुहाई। अति बिचित्र बहु बिधि तुम्ह गाई॥ निगमागम पुरान मत एहा। कहहिं सिद्ध मुनि नहिं संदेहा॥3॥ भावार्थ:- और कैसे अत्यंत विचित्र यह सुंदर हरिकथा सुनता, जो ...

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