असलम का घर

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असमतल, चिकनी सतह पर इधर-उधर फिसलते पारे-सा, अकबर का मन भी किसी एक जगह नहीं टिक पा रहा था। कभी तो उसे लगता तुषार की बात मान अपना मकान बेच दे ...

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