रामचरित मानस

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* निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी॥ जाकें नख अरु जटा बिसाला। सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला॥4॥ भावार्थ:-जो आचारहीन है और वेदमार्ग को छोड़े हुए है, कलियुग में ...

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