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चौपाई : * गयउँ उजेनी सुनु उरगारी। दीन मलीन दरिद्र दुखारी॥ गएँ काल कछु संपति पाई। तहँ पुनि करउँ संभु सेवकाई॥1॥ भावार्थ:-हे सर्पों के शत्रु गरुड़जी! सुनिए, मैं दीन, मलिन (उदास), ...