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उत्तरकाण्ड ज्ञान-भक्ति-निरुपण, ज्ञान-दीपक और भक्ति की महान् महिमा * भगति पच्छ हठ करि रहेउँ दीन्हि महारिषि साप। मुनि दुर्लभ बर पायउँ देखहु भजन प्रताप॥114 ख॥ भावार्थ:-मैं हठ करके भक्ति पक्ष पर ...