रामचरित मानस

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सुर श्रुति निंदक जे अभिमानी। रौरव नरक परहिं ते प्रानी॥ होहिं उलूक संत निंदा रत। मोह निसा प्रिय ग्यान भानु गत॥13॥ भावार्थ:-जो अभिमानी जीव देवताओं और वेदों की निंदा करते हैं, ...

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