कविताः पांवों की थिरकन

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कविता--पांवों की थिरकन बासंती बयारों से छलका मतवाला पन सरसों के फूलों सा खिल गया मेरा मन दहके गाल बन पलाश जैसे थिरकते   प़ांव मेरे वन के मोर जैसे नदिया सी ...

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