रामचरित मानस

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दोहाः मोह जलधि बोहित तुम्ह भए। मो कहँ नाथ बिबिध सुख दए॥ मो पहिं होइ न प्रति उपकारा। बंदउँ तव पद बारहिं बारा॥2॥ भावार्थ:-मोह रूपी समुद्र में डूबते हुए मेरे लिए ...

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