रामचरित मानस

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दोहा : * मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर। अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर॥130 क॥ भावार्थ:-हे श्री रघुवीर! मेरे समान कोई दीन नहीं है और ...

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