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शेर-ओ-शाइरी का क़द हूँ मैं क्यों लगे मीर-ओ असद हूँ मैं काग़ज़ी पैरहन में सहमी सी लफ़्ज़ के दायरे की हद हूँ मैं रूठकर फिर से मान जाऊँगा एक प्यारी-सी कोई ...