लिख रहा हूँ

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बिखरे  बिखरे  चंद  कुछ लफ़्ज़ों  से मैं आज! बिखरा  हुआ  सा  एक  साज़  लिख  रहा  हूँ। दरिया -ए- ग़म    में    उम्र    भर   डूबी    हुई, मैं  अपनी  वो  ...

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