शुतुरमुर्ग का किस्सा

91 Part

104 times read

0 Liked

वह छोटा-सा खत मेरी उँगलियों से फिसलकर हथेली में जा पहुँचा है और इतनी तेजी से मुट्ठी बंध गई है कि खोले नहीं खुल रही है, मैं कुरसी पर कहीं भी ...

Chapter

×