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गज़ल दिल्ली में मिल रहे, इन्हें पकवान भूल कर। आते नहीं हैं गांव वो, शैतान भूल कर।। इल्ज़ाम दूसरों पे, लगाते तो बहुत हैं। लेकिन हमेशा अपना, गिरेबान भूल कर।। कुर्सी ...