लेखनी कविता - मैं चल रही हूँ

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शीर्षक- मैं चल रही हूँ दुनियाँ की भीड़ में हूँ, पर खुद को अकेले पाती हूँ। हौसला रखती हूँ, पर कभी कभी टूट जाती हूँ। आज भी कुछ टूट सी गयी ...

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