लेखनी - दुनिया और दुनियादारी

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दुनिया और दुनियादारी कैसी है ये दुनिया, कैसी है दुनियादारी? भीड़ में खड़े हैं हम, फिर भी अकेलापन है भारी, सन्नाटों के बीच, अंतर्मन का शोर है जारी बातें सब करते ...

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