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शिशु समान भावों से मेरे वह जन्मी शिशु समान रचना है मेरी। धीरे-धीरे इसे पालती। नखरे इसके खूब उठाती। कभी उन्मुक्त भावों में लिखती कभी शब्दों से अलंकृत करती । हंसी ...