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*अखंड भारत* हो विलक्षण वेदनाएं द्वार मन का तोड़ती तब.... यह विसंगत चक्र इक चारण हृदय को जोड़ता है। और कवि मन ध्वंस के इस आवरण पर क्या कहेगा... वो ...