स्वप्न अखण्ड भारत

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*अखंड भारत*   हो विलक्षण वेदनाएं द्वार मन का तोड़ती तब.... यह विसंगत चक्र इक चारण हृदय को जोड़ता है।  और कवि मन ध्वंस के इस आवरण पर क्या कहेगा... वो ...

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