दो दुखों का एक सुख

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'साधो, करमगती किन टारी...' - मिरदुला कानी, सीढ़ी के पथरौटे पर बैठी, मंजीरा कुटफुटा रही थी - 'कोस अनेक बिकट बन फैल्यो, भसम करत चिनगारी... साधो...' और 'गाड़ी की सड़क' के ...

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