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कविता--विदाई लाल जोड़े में दुल्हन घर छोड़ चली बाबुल का आंगन पराया कर परी उड़ चली सागर जैसी अँखियों में पानी भर चली अनजान बगिया को सींचने जल ले चली सप्तपदी ...