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विषय--खामोशी* बिखर रहे हैं दिन पर दिन रिश्ते रिश्तों में दूरियों ने जगह बनाई जिस आंगन में होती थी हंसी ठिठोली वहां रहती है अब हरदम खामोशी\' छाई स्वार्थ के वशीभूत ...