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एक परिंदा... बेहिसाब थी मेरी हजारों ख्वाहिशे, सलाखों ने तोड़ दी है सारी। कभी उड़ जाया करता था इस नीले गगन में, आज परों को कतार दिए है सारे। नही थी ...
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