इश्क ए इजहार।

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इश्क ए इजहार की,, रिवायत कहा परवान चढी,, कुछ  हुई लैला मंजनू, सी,, तो कोई  श्री फरियाद  बनी ,, जो कही चढ गई  कुछ  हत्थे,, तो फिर  वो बागबान बनी,, हुआ ...

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