जलाये चल रही थी आग इन्क़लाब की (रुबाइ)

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लबों  की  पंखुड़ी  पे लालिमा गुलाब की,  हया  निगाह  में  मस्ती  लिये  शराब  की !  ज़ेरे-लब पे तबस्सुम का इक नज़ारा लिये; जलाये  चल रही  थी आग इन्क़लाब की!!  ========================= वी. ...

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