1 Part
123 times read
7 Liked
कविता ःःविक्षिप्त 🍂🍂🍂🍂🍂 हर तरफ कोलाहल था भीड़ों का रेल बना था हवा सहमी हुई थी समय डरकर भाग रहा था.. न जाने ये कैसा मंजर था इंसानों की शक्ल में ...