कविता ःःविक्षिप्त

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कविता ःःविक्षिप्त 🍂🍂🍂🍂🍂 हर तरफ कोलाहल था भीड़ों का रेल बना था हवा सहमी हुई थी समय डरकर भाग रहा था.. न जाने ये कैसा मंजर था इंसानों की शक्ल में ...

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