सोजे-ए-वतन--मुंशी प्रेमचंद

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यही मेरा वतन मैंने एक सिगरेट की डिबिया ली और एक सुनसान जगह पर बैठकर बीते दिनों की याद करने लगा कि यकायक मुझे उस धर्मशाला का ख़याल आया जो मेरे ...

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