सोजे-ए-वतन--मुंशी प्रेमचंद

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यही मेरा वतन  खुशी में पागल हो रहा था। मैंने अपना पुराना कोट और पतलून उतार फेंका और जाकर गंगा माता की गोद में गिर पड़ा, जैसे कोई नासमझ, भोला-भाला बच्चा ...

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