भड़केगी अभी और आग इन्क़लाब की (रुबाइ)

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पूछो  ही मत ग़ज़ल से क़ीमत    शबाब    की !  सहरा  में अब खिलेंगी कलियाँ    गुलाब   की !!  भड़की  हुई ये  आग है शायर   के  ख़्वाब  की ; भड़केगी  ...

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