मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी

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स्‍वामिनी मुंशी प्रेम चंद 6 कई दिन तक प्यारी मूर्छित-सी पड़ी रही। न घर से निकली, न चूल्हा जलाया, न हाथ-मुँह धोया। उसका हलवाहा जोखू बार-बार आकर कहता - 'मालकिन, उठो, ...

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