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कविता ःःअनजान 🍃🍃🍃🍃🍃🍃 धूप छिपी बदली में छुपाकर अपने सारे पँख पँख फैलाए उड़ने लगे बनकर घटा अभिमान अभिमान न करो बंदे ये नहीं कोई शान समय परिवर्तनशील है...आने वाले कल ...