कविता ःःअनजान

1 Part

231 times read

8 Liked

कविता ःःअनजान 🍃🍃🍃🍃🍃🍃 धूप छिपी बदली में छुपाकर अपने  सारे पँख पँख फैलाए उड़ने लगे बनकर घटा अभिमान अभिमान न करो बंदे ये नहीं कोई शान समय परिवर्तनशील है...आने वाले कल ...

×