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पूस की रात मुंशी प्रेम चंद 4 पत्तियॉँ जल चुकी थीं । बगीचे में फिर अँधेरा छा गया था । राख के नीचे कुछ-कुछ आग बाकी थी, जो हवा का झोंका ...