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स्त्री की आकांक्षा कोमल मन की स्वामिनी, हृदय सागर से भी गहरा। जब-जब भी बात होती है नारी तुम्हारी क्या इच्छा सोच में मैं पड़ जाती हूँ आखिर क्या मेरी ख्वाहिश ...