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ऐ ज़िंदगी कुछ मेरी भी सुन... अरमानों की छाऊ में कुछ देर बैठा ही था, बादलों का यूं रूठ जाना और फिर वहीं धूप आ जाती हैं। एक परिंदे सी है ...