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कविता--सूरज की आग तपिश में तपता वह परमज्ञानी खुद को तपाकर देता प्रकाश उजाले से भरकर फिर से जी जाती हमारी धरती लेकर नवसाँस। अगर जो सूरज नहीं होता तो आज ...