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गज़ल आज कल दिखती कहीं, ईमान की इज्जत नहीं। कर रहें शैतान अब, इंसान की इज्जत नहीं।। पहले हफ्तों तक जहाँ, होतीं थीं खातिरदारियाँ। अब वहां दिखती हमें, मेहमान की इज्जत ...