4 Part
389 times read
14 Liked
सोचती हूँ चांद कुछ झुक सा गया है द्वार पर जाकर तुम्हारे रुक गया है। सोचती हूँ ये हवाएं झूठ कितना बोलती हैं मेरे सारी बातें तुमसे बोलती हैं। सोचती हूँ ...