हिंदी दिवस प्रतियोगिता

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सोचती हूँ चांद कुछ झुक सा गया है द्वार पर जाकर तुम्हारे रुक गया है। सोचती हूँ ये हवाएं झूठ कितना बोलती हैं मेरे सारी बातें तुमसे बोलती हैं। सोचती हूँ ...

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