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बैलों की कथा मुंशी प्रेम चंद बैलों ने नांद में मुंह डाला तो फीका-फीका, न कोई चिकनाहट, न कोई रस ! क्या खाएं ? आशा-भरी आंखों से द्वार की ओर ताकने ...