अपनी ज़मीर

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कुछ तो यूँ लगता है कुछ- कुछ सोच कर हँसी आ जाती है कि तेरी गलतियों पर भी.....  मैं क्यों माफी मांगती थी तुझसे...  समझ में आ गई अब तेरी मोहब्बत ...

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