कविता--व्रत

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कविता--व्रत आज व्रत की परिभाषा बदलें हम करें स्वयं से संकल्प बदलेंगे हम समाज को  देंगे एक नया चमन रुढ़ियों की बेड़ियां तोड़कर आजादी का मनाएंगे जश्न हर कली का रुप ...

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