दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय शायरी

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ख़ुद को अभी तक,आजमाता ही रह गया। आंखों में नये  ख्व़ाब ,सजाता ही रह गया।। अंधेरा आया था,तूफ़ां से दोस्ती करके , मैं रात भर  च़राग, जलाता  ही रह गया । ...

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