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आल्हा छंद/वीर छंद (चौपाई+चौपई 16,15) मैंने भी तो भीतर अपने,छिपा रखें हैं अनगिन भाव। ढूंँढ रही शब्दों को ऐसे, लगे न जिससे कोई घाव। मैंने भी तो भीतर अपने, छिपा रखें ...