दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय कविता

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*अजी ! चुपचाप रहिए* लिख रही है आज कविता,  लिपि, अजी ! चुपचाप रहिए | छंद के उजले शहर में भाव आते हैं, सो रही अनुभूतियों को आ जगाते हैं,  सज ...

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