जख्मों का हिसाब

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कोई करता है खुल के इजहार ए मुहब्बत तो इश्क की बात पे मुकरता है कोई दिन गुजर जाता है चेहरे पे मुस्कान लिए हर शाम जख्मों का हिसाब करता है ...

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